1)
अस्तित्व की व्याख्या कैसे करें? डाओ-रास्ता
शब्दों के साथ : बस व्यर्थ प्रयास और असफलता
पृथ्वी और स्वर्ग का रहस्य नामहीन है !
जो भी नाम दिया गया है वो शब्दों का एक ढांचा है !
उस चीज़ का नाम और जो भी उसका नाम हो,
दोनों सत्य के ही दाने हैं,
केवल इच्छाएं और वासना हमें बराबरी करना मुश्किल बना देता है ।
वासना से मुक्त व्यक्ति ही, सार यानी की अर्क समझ सकता है।
यादृच्छिक रूपों की अभिव्यक्तियों के बीच छिपा हुआ,
यहीं से वो रास्ता जाता है सार तक।
2)
सही और गलत क्या है? : केवल परिभाषा मायने रखती है।
हम किसी चीज़ को नाम देते है: तो हम उसको माप दे देते हैं,
सुन्दरता और कुरूप के अनुसार।
हम मृत्यु को नजीवन के आधार से समझते हैं,
रिश्तो में हम लम्बाई और छोटाई देखते है,
गिरने में गहराई ही ऊंचाई का अविष्कार करती है।
एक सुर की तार को बजाने के लिए हमें दुरी की ज़रुरत होती है,
भविष्य, वर्तमान और भूत काल एक के बाद ही है।
इसलिए संत निष्पादन करते हैं, न करने को ,नाटक नहीं करते ।
उनकी शिक्षा मौन होती है, बिना शब्दों के।
कुछ बनाता है तो उसको अपना नहीं कहलवाता,
बिना किसी सहायता के रास्ते बनाता जाता है, एक के बाद एक,
बिना किसी प्रयास के, सहजता से परिवर्तनों को जन्म देता है।
और पूर्णता और पूर्ति में, गर्व से मुक्त होता है,
अपने लिए सम्मान और प्यार खोये बिना।